भारतीय नौसेना ने आज कर्नाटक के कारवार नौसेना अड्डे पर आयोजित एक भव्य समारोह में INSV कौण्डिन्य नामक ऐतिहासिक सिलाई विधि से निर्मित जहाज को औपचारिक रूप से शामिल किया। यह आयोजन भारत की प्राचीन नौ निर्माण परंपरा को न केवल पुनर्जीवित करता है, बल्कि विश्व मंच पर भारत की सांस्कृतिक और तकनीकी विरासत का भी गौरवपूर्ण प्रदर्शन करता है।
सांस्कृतिक गौरव का अनोखा क्षण
इस समारोह के मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत थे। उन्होंने इस ऐतिहासिक परियोजना की पूर्णता को भारत की गौरवशाली समुद्री परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बताया।
INSV कौण्डिन्य: इतिहास की पुनर्रचना
INSV कौण्डिन्य एक सिलाई से निर्मित पाल वाला पोत (Stitched Sail Ship) है, जिसकी प्रेरणा अजन्ता गुफाओं में 5वीं शताब्दी ईस्वी की चित्रकला में अंकित एक प्राचीन जहाज से ली गई है। यह पोत भारत की प्राचीन समुद्री तकनीकों और नौवहन परंपराओं का जीवंत उदाहरण है।
निर्माण में पारंपरिक तकनीकों का उपयोग
इस पोत का निर्माण केरल के पारंपरिक नाव शिल्पियों की एक टीम द्वारा किया गया, जिसका नेतृत्व प्रसिद्ध मास्टर शिपराइट श्री बाबू शंकरण ने किया।
निर्माण प्रक्रिया में आधुनिक उपकरणों के बजाय पारंपरिक तकनीक का प्रयोग किया गया, जैसे:
- लकड़ी की तख्तियों को नारियल की रस्सियों से सीना
- प्राकृतिक रेज़िन और नारियल रेशों का उपयोग जोड़ मजबूत करने हेतु
- कई महीनों तक लगातार शारीरिक श्रम और कौशल का अद्भुत संयोजन
महत्व और उद्देश्य
इस परियोजना का उद्देश्य भारत की प्राचीन नौ निर्माण विधियों और समुद्री ज्ञान को पुनर्जीवित करना है। यह न केवल भारत के इतिहास की गहराइयों में झांकने का अवसर है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को “मेड इन इंडिया” की आत्मनिर्भरता भावना से भी प्रेरित करता है।
निष्कर्ष
INSV कौण्डिन्य केवल एक नौसैनिक जहाज नहीं है, बल्कि यह भारत की गौरवशाली समुद्री विरासत, सांस्कृतिक पहचान और परंपरागत ज्ञान की जीती-जागती मिसाल है। इस पहल से यह संदेश जाता है कि भारत न केवल आधुनिक तकनीकी क्षमताओं से संपन्न है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक विरासत को संजोकर आगे बढ़ने में भी विश्वास रखता है।
🇮🇳 “समुद्र से संस्कृति तक, भारत का पुनर्जागरण”।
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